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सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

आशीष -कहानी


चिराग गुरुदेव के आश्रम में उनके दर्शनार्थ आया तो उसके साथ उसका प्यारा डॉगी टुकटुक भी कार में उसके साथ आया .कार से निकलते ही चिराग ने उसे भी गोद में लिया और आश्रम में घुसते ही उसे नीचे उतार दिया और वो वही घूमती एक गिलहरी के पीछे उसे पकड़ने के लिए दौड़ पड़ा .गिलहरी तेजी से पेड़ पर चढ़ गयी और ऊपर से झांक-झांक कर टुकटुक को चिढ़ाने लगी .चिराग ने इधर-उधर नज़र दौड़ाई तो देखा गुरुदेव प्रातः की प्रार्थना पूर्ण कर आश्रम के उपवन में लगे पौधों में जल का सिंचन कर रहे थे .चिराग ने उनके समीप जाकर -झुककर उनके चरण स्पर्श किये .गुरुदेव उसे आशीष देते हुए बोले-'' सदैव प्रसन्न रहो ! सदाचारी बनो !'' गुरुदेव के इन आशीषों पर इस बार चिराग ने विनम्र होकर उनसे पूछ ही लिया -'' गुरुदेव आप सदैव ये ही आशीष देते हैं मुझे ..जबकि अन्य श्रद्धालुओं को भिन्न-भिन्न आशीष देते हैं .ऐसा क्यूँ गुरुदेव ?'' गुरुदेव चिराग के इस प्रश्न पर मंद-मंद मुस्कुराते बोले- '' देखो पुत्र ! तुम्हारी आयु अभी अठ्ठारह -उन्नीस वर्ष की है .इस आयु में व्यवसायिक सफलता के प्रति ह्रदय में असीम महत्वाकांक्षाएं हिलोरें लेती हैं ....जो तनाव का कारण बनती हैं और कई युवा इस तनाव के आगे नतमस्तक होकर आत्महत्या तक कर लेते हैं .इसीलिए प्रथम आशीष मैं तुम्हें देता हूँ -''प्रसन्न रहो '' क्योंकि प्रसन्न वही रह सकता है जो संतोषी है .प्रयास करो पर निराश मत हो .जो प्रसन्नचित्त रहता है वही सकारात्मक प्रयासों द्वारा इच्छित सफलता प्राप्त करने में सक्षम हो पाता है .क्योंकि उसका मनोबल प्रबल रहता है .अब दुसरे आशीष ''सदाचारी बनो '' के सन्दर्भ में मेरी बात ध्यान से सुनों ...देखो वो उछलता-कूदता ,सबका मन मोहता तुम्हारा श्वान कितनी शान से रहता है .तुम उसे गोद में उठाकर खिलाते हो ,उसको तनिक भी परेशानी नहीं होने देते ,तुम्हारे वहाँ में ये राजाओं की तरह घूमता है ..पर है तो श्वान ही ना ...ये योनि क्यूँ मिली इसे ?..कभी सोचा है तुमने ? ...मैं बताता हूँ -ये पूर्व-जन्म में एक महान साधू था पर एक बार इसने अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण न रखते हुए प्रवचन सुनने आयी एक सुन्दर स्त्री को कामुक दृष्टि से देख लिया .ये मात्र एक क्षणिक वासना थी पर एक साधू के लिए ऐसा मानसिक आचरण तक पाप की श्रेणी में आता है जिसके कारण इसे यह योनि मिली .इसीलिए कहता हूँ सदाचारी बनो ..किसी स्त्री को वासनामय दृष्टि से मत देखो ...हुई कुछ जिज्ञासा शांत !'' गुरुदेव ने चिराग से मुस्कुराते हुए पूछा तो चिराग भी मुस्कुरा दिया .

शिखा कौशिक 'नूतन'

1 टिप्पणी:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सार्थक कहानी ... आचरण अच्छा होना ही चाहिए ...