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सोमवार, 10 मार्च 2014

आँखें -लघु कथा



''दादी माँ रुकिए !...उस कुर्सी पर मत बैठिये .. ..उस पर मधु मक्खी बैठी हुई है .'' ये कहकर किशोर शोभित ने कुर्सी पर से मधुमक्खी को उड़ा दिया और दादी माँ को उस पर सहारा देकर बैठाते हुए बोला -'' दादी माँ ..आज तो आपके मधु मक्खी काट ही लेती ..जरा ध्यान से देखकर बैठा कीजिये ..अब आपकी नज़र कमजोर हो गयी हैं !'' दादी माँ शोभित के सिर पर स्नेह से हाथ रखते हुए बोली -'' तू हैं ना ..फिर मुझे किस बात की चिंता !..पर एक बात बता तू तम्बाकू कब से खाने लगा ?...खबरदार जो आज के बाद तम्बाकू खाया .'' दादी ने शोभित का एक कान ये कहते हुए हल्के से खींच दिया .शोभित दंग होता हुआ बोला -'' आपको कैसे पता कि मैं तम्बाकू खाता हूँ ? ''दादी माँ मुस्कुराते हुए बोली -'' दिखाई देने वाली आँखें भले ही उम्र के साथ कमजोर हो जाएँ पर मन की आँखें उम्र बढ़ने के साथ तेज होती जाती हैं .....तेरी सांसों से तम्बाकू की बदबू आ रही है दुष्ट !'' शोभित अपने दोनों कान पकड़ते हुए बोला -'' आई स्वैर दादी माँ ! आगे से कभी तम्बाकू नहीं खाऊंगा .'' ये कहकर शोभित ने झुककर दादी माँ के चरण-स्पर्श कर लिए .

शिखा कौशिक 'नूतन'

2 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

nice short story .

Ramakant Singh ने कहा…

दादी माँ मुस्कुराते हुए बोली -'' दिखाई देने वाली आँखें भले ही उम्र के साथ कमजोर हो जाएँ पर मन की आँखें उम्र बढ़ने के साथ तेज होती जाती हैं .....तेरी सांसों से तम्बाकू की बदबू आ रही है दुष्ट !''
दादी का टपकता स्नेह